दिन रात मै सोचा करता हू,
ऍक खवाब सा देखा करता हूं,
जानता हू वो बस मे नही है।
फिर भी उसे पूजा करता हूं,
ऍक घुटन सी दिल मे रहती है।
बेवजह मै रोया करता हूं,
काश उसे मै कह भी सकूं,
कि मै तुमको चाहा करता हूं।
ये मेरी पहली कविता है,कृपया प्यार दें।
Wednesday, 11 July 2007
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5 comments:
बढ़िया, वैसे इसका जवाब हमारे पास है,
"कह दें उनसे जाकर, यही सही है,
अब की बैचेनी से तब का रंज सही है।"
स्वागत है हिंदी चिट्ठाजगत में, जारी रखें लिखना, शुभकामनाएं।
अगर आप नारद से परिचित नही है तो कृपया
देखें और इसमें अपने आप को पंजीकृत करने के लिए कृपया जाएं!!
विकास जी,
बहुत खूब। आपकी कविता पढ़कर अच्छा लगा। आपके ब्लॉग का लिंक हिन्द-युग्म से जोड़ा जा रहा है।
ब्लॉगिंग की दुनिया में आपका स्वागत है मलिक जी दिल की बातें कागज पर उतरेंगी तॊ हल्का हॊगा।
बहुत सुन्दर विकास अभी तो तुम्हारी शुरूआत है...बहुत अच्छा लिखा है तुमने...बहुत-बहुत बधाई...
सुनीता(शानू)
प्रिय विकास
बेवजह मै रोया करता हूं,
बहुत खूब
आपकी रचनाओं के लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं
बस यह समझिये कि शुरूआत हो चुकी है
यह वेवजह रोना काव्य के लिये ख़ाद है
किन्तु अन्य कारण से, तो सजीत जी की बात पर ध्यान दीजियेगा
अथवा कहानी कलश पर प्रवीण जी की कहानी स्वप्न सेतु
या फिर थोड़ा समय हो तो मेरी लघु कथा सुरूचि एवं सुस्रष्टा पढ़ें
सप्रेम
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