पल पल कट रहा है,
ऎक जमाने की तरह,
सोचने पर उसके बारे में आखें फूट पङती है,
नदियों की तरह।
आखिर क्यूं बसाऍ उन्होंने हमारी आखों में सपने,
जब उन्होंने समझा ही नहीं अपना।
हमने पूछा भी था,
कि इन सपनों की कोई तो वजह होगी,
तब उन्होंनें कहा ,
कि आपकी जिंदगी में इन सबकी जगह होगी।
हम तो अपने वादों पर टिके रहे ,
वो भी हमें दिलासे देते रहे।
हमने तो सोच लिया था ,
उनके साथ है जीना।
पर क्या पता था ,
जिसे हमने चाहा वही है बैगाना।
Wednesday 18 July, 2007
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